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Religious Movements
धार्मिक आन्दोलन
ईसा पूर्व छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदान में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ । जिनमे से जैन धर्म और बौद्ध धर्म सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध हुए, जिन्होंने अपने उपदेशो तथा कार्यो से समाज को प्रभावित किया । इन्होने जहाँ वेदिव धर्म की कुरीतियों और अतिवादी पंथ की आलोचना की, वही सामाजिक समस्या के समाधान का विकल्प भी प्रस्तुत किया ।
वेदिकोत्तर काल में समाज चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र) में विभाजित था तथा उनके कर्तव्य भी अलग अलग निर्धारित थे । वर्ण जन्म मूलक होते थे, ब्राह्मण जिन्हें पुरोहितो और शिक्षको का कर्तव्य सौपा गया था, समाज में उनका स्थान सबसे ऊँचा होता था। वे कई विशेषाधिकारों के दावेदार होते थे जैसे दान लेना, करों से छुटकारा आदि ।
वर्णक्रम में क्षत्रियो का स्थान दूसरा था । वे शासन करते थे और किसानो से वसूले गये करों पर जीते थे । वैश्य कृषि, पशुपालन और व्यापार करते थे और यही लोग मुख्य करदाता होते थे । शुद्रो का कर्तव्य ऊपर के तीनो वर्णों की सेवा करना था और उन्हें वेद पदने के अधिकार से वंचित रखा गया था । शूद्रों को अस्पर्श्य माना जाता था ।
तो यह स्वाभाविक ही था कि इस तरह के वर्ण विभाजन वाले समाज में तनाव पैदा हो । ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों के विरुद्ध क्षत्रियो का खड़ा होना नये धर्मो के उदभव का एक प्रमुख कारण बना । जैन धर्म के प्रमुख वर्धमान महावीर और बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध दोनों क्षत्रिय वंश के थे और दोनों ने ब्राह्मणों की मान्यता को चुनौती दी । वैश्य में समाज में अपने महत्त्व को बदाना चाहते थे । वे किसी ऐसे धर्म की खोज में थे जहाँ उनकी सामाजिक स्थिति सुधरे । इस प्रकार इन सारे कारको ने मिलकर जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदभव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
जैन धर्म
जैन धर्म के मूल संस्थापक या प्रवर्तक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव माने जाते है । जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है । इनका जन्म लगभग 599 ई. पू. (कही कही 540 ई. पू.) वज्जि संघ की राजधानी वैशाली (वर्तमान बिहार का एक जिला) के निकट कुण्डलग्राम में ज्ञातृक क्षत्रिय कुल में हुआ था ।
उनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक क्षत्रियो के संघ के प्रधान थे । उनकी माता का नाम त्रिशला था, जो लिच्छवी नरेश चेटक की बहन थी । महावीर का बचपन का नाम वर्धमान था । महावीर का प्रारंभिक जीवन सुख-सुविधापूर्ण था । युवावस्था में इनका विवाह यशोदा नामक कन्या से हुआ जिनसे प्रियदर्शनी नामक पुत्री का जन्म हुआ । प्रियदर्शनी का विवाह जामिल नामक क्षत्रिय से हुआ जो महावीर स्वामी का प्रथम शिष्य हुआ ।
30 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन की आज्ञा से सांसारिक जीवन छोड़कर महावीर ने निर्ग्रन्थ भिक्षु का जीवन जीना प्रारंभ किया । 12 वर्षो की कठोर तपस्या के बाद जम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे एक साल वृक्ष के नीचे केवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति हुई । इसी समय महावीर जिन (विजेता), अर्हत (पूज्य)और निर्ग्रन्थ (बन्धनहीन) कहलाये । महावीर ने 30 वर्षो तक जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया। 72 वर्ष की आयु में महावीर की मृत्यु (निर्वाण) 468 ई. पू. में पावापुरी (बिहार के राजगीर के निकट) हुई ।
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जैन धर्म के सिद्धांत
1 अहिंसा (हिंसा नही करना) 2 सत्य (झूठ नही बोलना)
3 अस्तेय (चोरी नही करना) 4 अपरिग्रह (संपत्ति अर्जित नही करना)
5 ब्रम्हचर्य (इन्द्रियों को वश में करना) ।
इन्हें पंच महाव्रत कहा जाता है । गृहस्थ जीवन जीने वाले जैनियों के इन व्रतो की कठोरता में पर्याप्त कमी की गई और इन्हें पंच अणुव्रत कहा गया । जैन धर्म में अहिंसा पर सबसे अधिक महत्त्व दिया गया है । इसमें कृषि एवं युद्ध में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगाया है, जिससे जैन धर्मावलम्बियों में व्यापार और वाणिज्य करने वालो की संख्या अधिक है ।
महावीर के अनुसार पूर्व जन्म में अर्जित पूण्य एवं पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च अथवा निम्न कुल में होता है । जैन धर्म में मुख्यतः सांसारिक बंधनों से छुटकारा पाने के उपाय बताये गये है । उनकेअनुसार मौक्ष पाने के लिए कर्मकाण्डीय अनुष्ठानो की आवश्यकता नही है, यह सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक आचरण से प्राप्त किया जा सकता है । ये जैन धर्म के त्रिरत्न माने जाते है ।
महावीर ने जैन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अपने अनुयायियों का संघ बनाया । इस संघ में स्त्री और पुरुष दोनों को स्थान दिया गया | चम्पा की राजकुमारी चंदना प्रथम जैन भिक्षुणी हुई । महावीर के 11 शिष्यों को गणधर कहा गया । चन्द्रगुप्त मौर्य (322 – 298 ई. पू.) ने जैन धर्म को अपनाया और राज्य का त्याग कर अपने जीवन के अंतिम वर्ष जैन साधू बनकर कर्नाटक में जैन धर्म का प्रचार करते हुए बिताये ।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में चन्द्रगुप्त मौर्य ने संल्लेखना विधि (अन्न जल त्याग कर) से अपने प्राण त्याग दिए । मौर्यकाल में मगध में भीषण अकाल पड़ा, यह अकाल 12 वर्षो तक रहा, जिससे जैन संघ के प्रमुख भद्रबाहु अपने कुछ अनुयायियों के साथ दक्षिणी भारत आ गये तथा शेष जैन लोग स्थूलभद्र के नेतृत्व में मगध में ही रहे । जैनों ने दक्षिणी भारत में जैन धर्म का प्रचार किया । अकाल समाप्त होने के बाद भद्रबाहु अपने अनुयायियों के साथ पुनः मगध लौट आये किन्तु जैन संघ के नियमो को लेकर भद्रबाहु और स्थुलभद्र के बीच मतभेद हो गये । इसके बाद से दक्षिणी जैन दिगंबर और मगध के जैन श्वेताम्बर कहलाये । श्वेताम्बर सफ़ेद वस्त्र करते थे तथा दिगम्बर निर्वस्त्र रहते थे। उड़ीसा में जैन धर्म को कलिंग नरेश खारवेल का संरक्षण प्राप्त था ।
जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नही है, यह आत्मा की सत्ता को स्वीकारता है । इसके अनुसार प्रत्येक जीव में दो तत्व सदैव विद्यमान रहते है- एक आत्मा और दूसरा इसको खेरने वाला भौतिक तत्व । आत्मा से भौतिक तत्व के अलग होने पर ही निर्वाण का मार्ग प्रशस्त होता है । जैन धर्म को मानने वाले प्रमुख राजा – उदायिन, चन्द्रगुप्त मौर्य, कलिंग नरेश खारवेल, राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष इत्यादि । उत्तर भारत में जैन धर्म के प्रमुख केंद्र उज्जैन एवं मथुरा है ।
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प्रमुख जैन तीर्थंकर और उनके प्रतीक चिन्ह
प्रमुख जैन तीर्थंकर और उनके प्रतीक चिन्ह
तीर्थंकर | क्रम | प्रतीक |
---|---|---|
ऋषभदेव (आदिनाथ) | प्रथम | सांड |
अजितनाथ | द्रितीय | हाथी |
संभवनाथ | तृतीय | घोडा |
सम्पार्श्व | सप्तम | स्वास्तिक |
शांतिनाथ | सोलहवे | हिरण |
नेमिनाथ | इक्कीसवे | नीलकमल |
अरिष्टनेमि | बाइसवे | शंख |
पाशर्वनाथ | तेईसवे | सर्प |
महावीर | चौबीसवे | सिंह |
जैन संगतियाँ (सभा)
संगति | स्थान | समय | अध्यक्ष | कार्य |
---|---|---|---|---|
प्रथम | पाटलिपुत्र | 367 ई. पू | स्थुलभद्र | जैन धर्म के 11 अंगो का संकलन व जैन धर्म का श्वेताम्बर और दिगम्बर में विभाजन |
द्रितीय | वल्लभी | 513 ई. पू. | देवार्धी | धर्म ग्रंथो का अंतिम क्षमाश्रवन संकलन कर लिपिबद्ध किया गया |
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बौद्ध धर्म
गौतम बुद्ध महावीर के समकालीन थे । उनका जन्म 563 ई. पू. शाक्य क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था । उनके पिता शुद्धोधन शाक्यगण के प्रधान थे तथा उनकी माता महामाया देवी कोलिय वंश की थी । गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था । इनके जन्म के सातवे दिन इनकी माता की मृत्यु होने के कारण इनका पालन पोषण इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया ।
बचपन से ही गौतम का ध्यान आध्यात्मिक चिंतन की ओर था । 16 वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा से हुआ जिनसे इनको पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल था । परन्तु उनका मन सांसारिक मोह बंधनों में नही लगा । वे सांसारिक दुखों को देखकर दुखी हो जाते और उनके निवारण के लिए उपाय खोजते । 29 वर्ष की आयु में उन्होंने गृह त्याग दिया जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण की संज्ञा दी गयी है ।
सात वर्ष तक भटकने के दौरान इन्होने आलारकलाम (सांख्य दर्शन के आचार्य) से शिक्षा ली परन्तु ज्ञान प्राप्त नही हुआ । अंततः कठिन साधना के बाद 35 वर्ष की आयु में उरुवैला (बौधगया) में वैशाख पूर्णिमा की रात्रि में निरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष के नीचे गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई । ज्ञान प्राप्ति के बाद वह बुद्ध कहलाये । ज्ञान प्राप्ति के बाद वे वाराणशी गये तथा अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया, जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन कहते है ।
महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश (पालि भाषा में) श्रावस्ती में दिये । उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया । बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासको में बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदायिन थे तथा इनके प्रधान शिष्य आनंद और उपालि थे । बुद्ध की प्रथम महिला भिक्षुणी बुद्ध की मौसी प्रजापति गौतमी थी । कुशीनगर में 483 ई. पू. में 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु (निर्वाण) हो गयी, जिसे महाभिनिष्क्रमण के नाम से जाना जाता है । महाभिनिष्क्रमण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित कर इन अवशेषों पर आठ स्तुपो का निर्माण किया गया । मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित साँची स्तूप सभी स्तुपो में सबसे विशाल और श्रेष्ठ है इसका निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने करवाया था ।
बुद्ध बड़े व्यावहारिक सुधारक थे । उन्होंने कहा कि संसार दुखमय है और लोग केवल काम (इच्छा और लालसा) के कारण दुःख पाते है । उनके अनुसार काम अर्थात लालसा पर विजयी पायी जाये तो निर्वाण प्राप्त हो सकता है । मौक्ष की प्राप्ति के लिए बुद्ध ने अस्टांगिक मार्ग बताये है – Religious Movements
1 सम्यक द्रिष्टि 2 सम्यक संकल्प 3 सम्यक वाणी 4 सम्यक कर्म
5 सम्यक जीवन 6 सम्यक स्मृति 7 सम्यक समाधि 8 सम्यक व्यायाम
यदि कोई व्यक्ति इन आठ मार्गो का अनुसरण करे तो वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है । बुद्ध धर्म अनीश्वरवादी है तथा पुनर्जन्म को माना जाता है । बौद्ध धर्म के तीन प्रमुख अंग/त्रिरत्न थे – बुद्ध, धम्म और संघ । मगध, कौशल और कौशाम्बी के राजाओ, अनेक गणराज्यो व उनकी जनता ने बौद्ध धर्म को अपना लिया । बुद्ध के निर्वाण के लगभग दो सौ वर्ष बाद प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया । अशोक ने इस धर्म को पश्चिमी एशिया, मध्य एशिया तथा श्री लंका में फैलाया । Religious Movements
बुद्ध धर्म के प्रतीक
घटना | प्रतीक/चिन्ह |
---|---|
जन्म | कमल तथा सांड |
गृह त्याग | घोडा |
ज्ञान | पीपल (बौद्धिवृक्ष) |
प्रथम उपदेश | चक्र |
निर्वाण | पद चिन्ह |
मृत्यु | स्तूप |
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बौद्ध संगतियाँ
क्र. स. | स्थान | समय | शासनकाल | अध्यक्ष | कार्य |
---|---|---|---|---|---|
प्रथम बौद्ध संगति | सप्तपर्णी गुफा | 483 ई. पू. | अजातशत्रु | महाकस्सप | बुद्ध के उपदेशो का संकलन राज सुत्तपिटक और विनयपिटक में |
द्रितीय बौद्ध संगति | वैशाली | 383 ई. पू. | कालाशोक | सबाकमीर | भिक्षुओ में मतभेद के कारण बौद्धसंघ में विभाजन (1) स्थविर (2) महासंघिक में |
तृतीय बौद्ध संगति | पाटलिपुत्र | 251 ई. पू. | अशोक | मोग्गलिपुत्त तिस्स | अभिधम्मपिटक का संकलन |
चतुर्थ बौद्ध | कुण्डलवन | प्रथम शताब्दी ईस्वी | कनिष्क | वसुमित्र (अध्यक्ष) अश्वघोष (उपाध्यक्ष) | बौद्ध धर्म का विभाजन (1) हीनयान (2) महायान |
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वैष्णव धर्म
वैष्णव धर्म के बारे में प्रारंभिक जानकारी उपनिषदों से मिलती है । इसका विकास भागवत धर्म से हुआ है । इस धर्म के संस्थापक वासुदेव कृष्ण थे । जो वृष्णि वंशीय यादव कुल के नेता थे । जिनका निवास स्थान मथुरा था । छान्दोग्य उपनिषद में सर्वप्रथम कृष्ण का उल्लेख मिलता है । इसमें उन्हें देवकी पुत्र और अंगिरस का पुत्र बताया गया है । भागवत धर्म संभवतः सूर्य पूजा से सम्बंधित है । इस धर्म के सिद्धांत भागवतगीता में निहित है । वासुदेव कृष्ण को वैदिक देव विष्णु का अवतार माना गया है । वासुदेव के भक्त या उपासक भागवत कहलाते थे । भगवतगीता प्रतिपादित “अवतार सिद्धांत” वैष्णव धर्म की महत्वपूर्ण विशेषता थी । मेगस्थनीज ने कृष्ण को हेराक्लीज कहा है । विष्णु के 10 अवतारों को उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है –
1 मत्स्य 2 कुर्म 3 वराह 4 नृसिंह 5 वामन
6 परशुराम 7 राम 8 कृष्ण 9 बुद्ध 10 कल्कि
विष्णु के अवतारों में वराह अवतार सर्वाधिक लोकप्रिय था जिसका उल्लेख सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है । नृसिंह, वामन एवं नारायण दैवीय अवतार माते जाते है और शेष सात मानवीय अवतार माने जाते है । जैन धर्मग्रन्थ उत्तराध्ययन सूत्र में वासुदेव कृष्ण को 22 वे तीर्थंकर अरिष्टनेमि का समकालीन बताया गया है ।
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शैव धर्म
शैव धर्म का उद्भव उपनिष्दोत्तर काल में हुआ । भगवान शिव की पूजा करने वाले को शैव तथा शिव से सम्बंधित धर्म को शैव धर्म कहा गया है । इसमें लिंग पूजा तथा मूर्ति पूजा दोनों होती है । लिंग पूजा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख मतस्य पुराण में मिलता है । शिव उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हडप्पा सभ्यता के अवशेषों से मिलता है । मेगस्थनीज ने शिव को डायोनिसस कहा था । महाभारत में शिव का उल्लेख एक श्रेष्ट देवता के रूप में हुआ है । दक्षिणी भारत में शैव आन्दोलन 63 नयनार संतो ने चलाया । शैव धर्म को प्रारंभ शुंग-सातवाहन काल में हुआ जो गुप्त काल में अपने चरम पर अपहुँच गया । अर्धनारीश्वर तथा त्रिमूर्ति की पूजा गुप्त काल में प्रारंभ हुई ।
पाशुपत शैव धर्म में सर्वाधिक प्राचीन सम्प्रदाय है, जिसके संस्थापक लकुलीश थे । जिन्हें भगवन शिव के अवतारों में से एक माना जाता है । चन्द्रगुप्त द्रितीय के मथुरा स्तम्भ अभिलेखों से लकुलीश के विषय में जानकारी मिलती है । इसके अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है । कापालिक सम्प्रदाय के ईष्टदेव भैरव थे, जो शिव के अवतार माने जाते थे । इस सम्प्रदाय में तंत्र-मंत्र, मांस-मदिरा आदि का प्रचलन था ।
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Related Quiz
- जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए ?
(अ) 20 (ब) 22
(स) 24 (द) 21
- बुद्ध को किस स्थान पर महापरिनिर्वाण (मृत्यु) प्राप्त हुआ ?
(अ) कुशीनगर (ब) पावापूरी
(स) सारनाथ (द) कपिलवस्तु
- जैन धर्म में पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति के लिए क्या शब्द है ?
(अ) स्मृति (ब) केवल्य
(स) निर्वाण (द) जिन
- महावीर का मूल नाम क्या था ?
(अ) वर्धमान (ब) गौतम
(स) राहुल (द) सिद्धार्थ
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- लिंग पूजा किस धर्म से सम्बंधित है ?
(अ) बौद्ध (ब) वैष्णव
(स) जैन (द) शैव
- भगवान विष्णु के वराह अवतार का उल्लेख किस वेद में मिलता है ?
(अ) सामवेद (ब) यजुर्वेद
(स) ऋग्वेद (द) अथर्ववेद
- तृतीय बौद्ध संगति (251 ई. पू.) का आयोजन किसके काल में हुआ ?
(अ) अशोक (ब) बिम्बिसार
(स) कनिष्क (द) कालाशोक
- बुद्ध धर्म के प्रतीक में से कोनसा प्रतीक बुद्ध के गृह त्याग से सम्बंधित है ?
(अ) चक्र (ब) हाथी
(स) घोडा (द) पीपल
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- जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर कौन था ?
(अ) महावीर (ब) ऋषभदेव
(स) सम्भवनाथ (द) अजितनाथ
- साँची स्तूप किस राज्य में स्थित है ?
(अ) महाराष्ट्र (ब) उत्तरप्रदेश
(स) राजस्थान (द) मध्यप्रदेश
उत्तर :- 1 (स) : 2 (अ) : 3 (ब) : 4 (अ) : 5 (द) : 6 (स) : 7 (अ) : 8 (स) : 9 (ब) : 10 (द)
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