Mahatma Buddha Biography important for mppsc 2021-22

                      Mahatma Buddha Biography  

 Mahatma Buddha Biography

महात्मा बुद्ध के जीवन चरित्र पर अनेक बौद्ध ग्रन्थों (ललित-विस्तर, बुद्धचरित, महावस्तु व सुत्तनिपात) से प्रकाश पड़ता है। महात्मा बुद्ध की जन्म-तिथि के विषय में विद्वानों में मतभेद है, परन्तु अधिकांश विद्वान इसे ई. पू. 563 ही मानते हैं। महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी वन (आधुनिक रुम्मिनदेई) में हुआ था। बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्यों के राज्य कपिलवस्तु के शासक थे। बुद्ध की माता माया जो कपिलवस्तु से अपने पिता के घर जा रही थी, तब रास्ते में लुम्बिनी में दो साल वृक्षों के बीच में बुद्ध का जन्म हुआ था।           

Mahatma Buddha Biography

बुद्ध  का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके जन्म के सातवें दिन ही उनकी मां माया का देहान्त हो गया था !अतः सिद्धार्थ का पालन-पोषण उसकी मौसी व विमाता प्रजापति ने किया।

सिद्धार्थ (ज्ञान प्राप्ति से पूर्व का नाम) बचपन से ही चिन्तनशील तथा गम्भीर स्वभाव के थे तथा घण्टो एकान्त में बैठ कर चिन्तन किया करते थे। अतः राजा शुद्धोधन ने 16 वर्ष की । अवस्था में ही उनका विवाह रामग्राम के कोलिय गणराज्य की राजकमारी यशोधरा से कर दिया। संसार के दुःख सिद्धार्थ की आंखों से ओझल नहीं हुए थे, परन्तु फिर भी लगभग 12 वर्षों तक उन्होंने गृहस्थ जीवन बिताया। बौद्ध-ग्रन्थों से पता चलता है कि सांसारिक जीवन को त्यागने का विचार उनके मस्तिष्क में चार घटनाओं से आया। उन्होंने एक वृद्ध को देखा जिसका शरीर वृद्धावस्था के कारण जर्जर हो चुका था। एक अपाहिज तथा एक लाश को देखकर भी उनके मन पर प्रभाव पड़ा। तत्पश्चात् उन्होंने एक संन्यासी को देखा जो सांसारिक बन्धन तोड़कर मोक्ष के लिए प्रयत्नशील था। इन घटनाओं ने उनको भी घर त्यागने के लिए प्रेरित किया।

  महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय
महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय Mahatma Buddha Biography

कुछ समय पश्चात् उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। पुत्र जन्म का समाचार सुनकर उन्होंने कहा “आज मेरे बन्धन की श्रृंखला में एक कड़ी और जुड़ गई।” अतः एक रात यह यशोधरा तथा राहुल को सोता छोडकर ज्ञान की खोज में निकल पड़े। गौतम द्वारा गृहत्याग की घटना को बौद्ध धर्म में ‘महाभिनिष्क्रमण’ की संज्ञा दी गयी।   

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घर छोड़ने के पश्चात सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में इधर-उधर भटकते रहे। इस उद्देश्य से वह मगध की राजधानी राजगृह में अलार तथा उद्रक नामक दो प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वानों के पास पहुंचे, परन्तु वहां उन्हें सन्तुष्टि न हुई। अतः वे घूमते हुए निरंजना नंदी के किनारे उरुवेल नामक वन में पहुंचे, जहां उनकी अन्य तपस्वियों से भेंट हुई। इन तपस्वियों के साथ उन्होंने घोर तपस्या की। उनका शरीर सूखकर जर्जर हो गया, किन्तु उन्हें वांछित ज्ञान की  प्राप्ति न हुई। तत्पश्चात् सिद्धार्थ गया पहुंचे।

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वहां उन्होंने एक वट वृक्ष के नीचे समाधि लगायी व प्रतिज्ञा की कि जब तक ज्ञान प्राप्त न होगा वे वहां से हटेंगे नहीं। सात दिन व सात रात समाधि में रहने के पश्चात् आठवें दिन बैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें सच्चे ज्ञान का प्रकाश मिला। इस घटना को सम्बोधि’ (Great Enlightenment) कहा गया। जिस वृक्ष के नीचे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया था उसे बोधिवृक्ष तथा गया को बोध गया कहा जाने लगा। सिद्धार्थ को भी इस घटना के बाद महात्मा बुद्ध (जाग्रत) कहा जाने लगा।           Mahatma Buddha Biography

महात्मा बुद्ध का उद्देश्य मात्र स्वयं ही ज्ञान प्राप्त करना न था। वह अन्य लोगों में भी अपने ज्ञान का प्रसार कर उन्हें दुःखों से मुक्त करना चाहते थे। अतः महात्मा बुद्ध ने काशी की ओर प्रस्थान किया तथा ऋषिपत्तन (सारनाथ) पहुंचे। सारनाथ में महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम पांच ब्राह्मणों को उपदेश दिया। ये ब्राह्मण महात्मा बुद्ध से बहुत प्रभावित हुए तथा उनके शिष्य बन गए। इन शिष्यों को ‘पंचवर्गीय’ कहा जाता है। महात्मा बुद्ध द्वारा इन शिष्यों को दिए गए उपदेशों की घटना को ‘धर्म-चक्र प्रवर्तन’ (Turning the wheel of the Law)  कहा जाता है।

 Mahatma Buddha Biography
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महात्मा बुद्ध आजीवन अंग, मगध, काशी, मल्ल, शाक्य, वज्जि, कोशल, आदि सभी नगरों में घूम-घूम कर अपने धर्म का प्रचार करते रहे। अस्सी वर्ष की अवस्था में घूमते हुए वह पावा पहुंचे, जहां उन्हें अतिसार रोग हो गया। इसके पश्चात् वह कुशीनगर पहुंचे। कुशीनगर, उस समय मल्लों की राजधानी थी। बैशाख पूर्णिमा के दिन उन्होंने 483 ई. पू. में अपनी जीवन-लीला समाप्त की। इस घटना को ‘महापरिनिर्वाण’ कहा जाता है।

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