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Fahiyan ki bharat yatra ka varnan
फाह्यान का भारत वर्णन
Fahiyan ki bharat yatra ka varnan (FA-HIEN’S DESCRIPTION OF INDIA)
Fahiyan ki bharat yatra ka varnan सम्राट अंशोक व कुषाण-शासक कनिष्क के प्रयत्नों से बौद्ध धर्म का तीव्र गति से प्रसार हुआ था। बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर समय-समय पर अनेक चीनी यात्रियों ने भारत की यात्रा की ! ताकि बौद्ध धर्म सम्बन्धी अपनी अनेक जिज्ञासाओं का समाधान कर सके! तथा अपनी ज्ञान-पिपासा को शान्त कर सकें। इन्हीं यात्रियों में से एक फाह्यान था।
Fahiyan ki bharat yatra ka varnan
प्रारम्भिक जीवन—
फाह्यान का जन्म चीन के वु-यंग नामक स्थान पर हुआ था! तथा उसका प्रारिम्भक नाम कुंङ था। उसका पिता बौद्ध धर्मावलम्बी था! तथा कुंङ को भी बौद्ध शिक्षा प्रदान करना चाहता था।
फाह्यान जिस समय बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण कर रहा था! तब उसे ज्ञात हुआ कि चीन में बौद्ध धर्म अधूरा है! अतः उसने बौद्ध धर्म के प्रामाणिक ग्रन्थों को प्राप्त करने, बौद्ध धर्म की जन्म-भूमि भारत के दर्शन करने ! तथा बौद्ध-तीर्थस्थलों का दर्शन करने के उद्देश्य से भारत यात्रा का कार्यक्रम बनाया।
यात्रा –
फाह्यान ने 399 ई. में भारत-यात्रा के लिए प्रस्थान किया,व 414 ई. तक !भारत के विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों का पर्यटन किया। फाह्यान ने 405 ई. में भारत में प्रवेश किया था !तथा 414 ई. तरह भारत में रहा। इनमें से तीन वर्ष उसने पाटलिपुत्र में व्यतीत किए थे। फाह्यान का भारत यात्रा वर्णन ! Fahiyan ki bharat yatra ka varnan
फाह्यान बौद-पाण्डलिपियों व अन्य प्राचीन अवशेषों के संग्रह में इतना संलग्न रहा था !कि अन्य पार्थिक वस्तुओं के प्रति वह उदासीन बना रहा ! यहां तक कि, उसने जिस सम्राट के शासन में अपनी भारत यात्रा के वर्ष व्यतीत किए !उसके (चन्द्रगुप्त द्वितीय) नाम का उल्लेख तक फाह्यान ने अपने वृत्तान्त में नहीं किया है! किन्तु फिर भी उसने भारत निवासीयों के जीवन व देश की तत्कालीन स्थिति के विषय में विस्तृत वृत्तान्त लिखा है! जिसका ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में अत्यन्त महत्व है। फाह्यान का यात्रा-वृत्तान्त फ़ो-क्वो-की(Fo-Kwo-Ki) नामक ग्रन्थ के रूप में मिलता है।
राजनीतिक दशा –
फाह्यान ने भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का वर्णन किया है। उसके अनुसार भारत का सम्राट ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था ! तथा उसका शासन-प्रबंधन सुव्यवस्थित था। शासन उदार व हल्का था। भारतीय दण्ड-व्यवस्था के कानून भी सरल व उदार थे। प्राणदण्ड नहीं दिया जाता था। देशद्रोहिता करने पर दाहिना हाथ काटा जाता था। चोरी-डकैती की घटनाएं भी न के बराबर थीं। फाह्यान के वृत्तान्त से ऐसा प्रतीत होता है, कि चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में जनता सुखी थी ! व दण्ड विधान साधारण था।
Fahiyan ki bharat yatra ka varnan
(2) पाटलिपुत्र- फाह्यान लगभग तीन वर्षों तक पाटलिपुत्र में रहा था, अतः अपने वृत्तान्त में उसने पाटलिपुत्र के विषय में अनेक बातें लिखी हैं। फाह्यान के अनुसार पाटलिपुत्र में दो विशाल और सुन्दर थे ! जिनमें एक हीनयान व दूसरा महायान का था। इनमें लगभग 600-700 बौद्ध भिक्षु निवास करते थे।
फाह्यान ने अशोक के राजभवन का भी उल्लेख किया। है। उसके वैभव को देखकर फाह्यान दंग रह गया था !तथा उसने लिखा है,कि यह राजप्रासाद अमानवीय व दैवीय शक्तियों द्वारा बनाया गया होगा।
(3) सामाजिक स्थिति – फाह्यान ने भारतीय समाज की अत्यन्त प्रशंसा की है। उसके अनुसार भारतीय अत्यधिक अतिथि सत्कार की भावना से प्रेरित थे, तथा दयालु एवं धार्मिक प्रवृत्ति के थे। जनता साधारणतया शाकाहारी थी ,तथा अहिंसात्मक नीति का पालन करती थी। लोग प्याज, लहसुन, मांस, मछली तथा मदिरा का प्रयोग नहीं करते थे। केवल चाण्डाल ही मांस का भक्षण करते थे।
(4) आर्थिक स्थिति— फाह्यान के वर्णन से पता चलता है, कि भारत का व्यापार उन्नत अवस्था में था। फाह्यान ने अपने साथ सफेद रेशम लेकर भारत आने वाले एक चीनी व्यापारी का उल्लेख किया है, जिससे पता चलता है, कि भारत व चीन के मध्य व्यापारिक सम्बन्ध थे! व चीन से रेशम आयात की जाती थी।
(5) धार्मिक दशा— फाह्यान के अनुसार भारत में विभिन्न धर्म विद्यमान थे। फाह्यान के अनुसार पंजाब व बंगाल में बौद्ध धर्म उन्नत अवस्था में था, किन्तु मध्यदेश में उसका पतन हो रहा था। मध्यदेश में ब्राह्मण धर्म उन्नत अवस्था में था,तथा राजा स्वयं भी वैष्णव धर्म का अनुयायी था। ब्राह्मण व बौद्ध धर्मावलम्बियों में पारस्परिक वैमनस्य न था! किसी प्रकार की धार्मिक असहिष्णुता दिखायी नहीं देती थी।
Fahiyan ki bharat yatra ka varnan
फाह्यान के वर्णन से स्पष्ट होता है, कि चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में शान्ति विद्यमान थी ! व जनता सुखी व संपन्न थी। उस समय शासन-व्यवस्था उच्च कोटि की थी! तथा लोग धार्मिक मनोवृत्ति वाले एवं राज्य धर्म-सहिष्णु था।
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