GANDHARA AND MATHURA ART important

 

GANDHARA AND MATHURA ART

गान्धार एवं मथुरा कला

GANDHARA AND MATHURA ART 

(1) गान्धार कला

कुषाण काल में गान्धार एक ऐसा प्रदेश था।जहां एशिया और यूरोप की कई सभ्यताएं एक-दूसरे से मिलती थीं। पूर्व से भारतीय और पश्चिम से यूनानी, रोमन, ईरानी और शक संस्कृतियों का यह संगम-स्थल था। इसके परिणामस्वरूप गान्धार में एक ऐसी मूर्तिकला का विकास हुआ। जिसे गान्धार कला कहा जाता है। इस कला के प्रमुख केन्द्र तक्षशिला पुरुषपुर तथा निकटवर्ती क्षेत्र थे।

GANDHARA AND MATHURA ART

(अ) तिथि – ऐसा प्रतीत होता है, कि द्वितीय शताब्दी ई. पू. तक गान्धार कला का आविर्भाव हो चुका था ! तथा कनिष्क शासनकाल में यह उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच गयी थी।

(ब) विषय- गान्धार कला के विषय भारतीय, किन्तु तकनीक यूनानी है।इसी कारण गान्धार कला को इण्डो-ग्रीक, इण्डो-बैक्ट्रियन, इण्डो-हैलेनिक, इण्डो-रोमन तथा ग्रीको-बुद्धिस्ट कला के नाम से भी जाना जाता है! किन्तु भौगोलिक आधार पर प्रमुख रूप से इस कला को गान्धार कला ही कहा जाता है।

(स) यूनानी प्रभाव- गान्धार कला पर यूनानी प्रभाव निर्विवाद है। अधिकांश विद्वान इस तथ्य को स्वीकारते हैं, कि वास्तव में गान्धार कला के अन्तर्गत निर्मित मूर्तियों का विषय भारतीय, किन्तु तकनीक यूनानी है।

(द) गान्धार कला की विशेषताएं— गान्धार कला की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं हैं :

(i) गान्धार कला के विषय भारतीय व तकनीक यूनानी है। GANDHARA AND MATHURA ART

GANDHARA AND MATHURA ART गान्धार एवं मथुरा कला
GANDHARA AND MATHURA ART गान्धार एवं मथुरा कला

GANDHARA AND MATHURA ART

(ii) मूर्तियां प्रायः स्लेटी पत्थर से निर्मितं हैं।

(iii) महात्मा बुद्ध को सिंहासन पर बैठे हुए दर्शाया गया है तथा कहीं-कहीं वे चप्पल भी धारण किए हुए हैं।

(iv) महात्मा बुद्ध के केश व उष्णीश (जूड़ा) दिखाए गए हैं तथा वे आभूषण भी धारण किए हुए हैं।

(v) यूनानी प्रभाव के कारण गान्धार मूर्तियों में बुद्ध अपोलो देवता के समान लगते हैं।

(vi) मूर्तियों में मोटे व सिलवटदार वस्त्र दिखाए गए हैं।

(vii) अधिकांश मूर्तियां महात्मा बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं।

(viii) गान्धार मूर्तियों में आध्यात्मिकता व भावुकता का अभाव है।

(ix) गान्धार कला के अन्तर्गत निर्मित स्तूप अत्यन्त ऊंचे हैं।

(2) मथुरा कला–

जिस समय गान्धार में गाभार शैली का विकास हो रहा था लगभग उसी समय मथुरा में भी एक नवीन शैली का आविर्भाव हुआ, जिसका केन्द्र मथुरा होने के कारण उसे ‘मथुरा- कला’ के नाम से जाना जाता है। मधुरा में भी महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों की मूर्तियों का निर्माण हुआ।

मथुरा बौद्ध, जैन और ब्राह्मण तीनों धर्मों का केन्द्र था, अतएव तीनों धर्मों से सम्बन्धित मूर्तियों के अवशेष यहां मिलते हैं। मथुरा कला का स्वर्णयुग कुषाण सम्राट कनिष्क, हुविष्क। और वासुदेव का राज्यकाल था।

मथुरा कला के अन्तर्गत बौद्ध धर्म सम्बन्धी मूर्तियों में महात्मा बुद्ध तथा बोधिसत्वों की मूर्तियां हैं जिनमें महात्मा बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं को चित्रित किया गया है। महात्मा बुद्ध की मूर्तियां ऊर्ध्ववस्त्र व अधोवस्त्र धारण किए हुए हैं। महात्मा बुद्ध का सिर मुण्डित है व चेहरे पर आध्यात्मिकता के भाव प्रदर्शित किए गए है। मुख के चारों ओर प्रभामण्डल है जो अलंकृत है।

बौद्ध मूर्तियों के अतिरिक्त ब्राह्मण व जैन देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मथुरा कला के अन्तर्गत बनायी गयीं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, कार्तिकेय, इन्द्र, अग्नि, सूर्य, कृषण, लक्ष्मी,सरस्वती, पार्वती, दुर्गा, आदि की मूर्तियां मिलती हैं। जैन तीर्थंकरों की भी अनेक मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। इनके अतिरिक्त अनेक यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियों में इन्द्रियपरकता है। ये मूर्तियां चित्त पर कम प्रभाव डालती हैं तथा अत्यन्त कामुक हैं।

मथुरा कला के अन्तर्गत मूर्तियों का निर्माण बलुए पत्थर से किया गया है।

READ MORE:- CORONA VIRUS KAB TAK LIVE

 

Leave a Comment