Chaitanya Mahaprabhu Ka Jeevan Parichay Important notes mppsc 2021-22

Chaitanya Mahaprabhu Ka Jeevan Parichay

चैतन्य महाप्रभु का जीवन परिचय

चैतन्य महाप्रभु का जन्म फाल्गुन पूर्णिमा 18 फरवरी, 1486 में । नदिया (नवद्वीप) जिले के मायापुर गांव में हुआ था। पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र तथा माता का नाम शची देवी था। ये बाल्यावस्था से ही बहुत चंचल स्वभाव के बालक थे। अध्ययन में ये काफी कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। थोड़े समय में इन्होंने व्याकरण, स्मृति, न्याय दर्शन में विशेष. योग्यता प्राप्त कर ली। शिक्षा समाप्त होने के पश्चात् इनका विवाह नदिया के बल्लभाचार्य की पुत्री लक्ष्मी से कर दिया गया, लेकिन सांप के काटने से लक्ष्मी की मृत्यु हो गयी। कुछ समय बाद इन्होंने नदिया के एक सम्पन्न परिवार की लड़की विष्णुप्रिया सेशादी कर ली। जीवन निर्वाह के लिए इन्होंने एक पाठशाला चलाई,लेकिन कुछ समय पश्चात् इन्होंने सब कुछ त्यागकर संन्यासी जीवन व्यतीत करने का निश्चय किया। पिता की मृत्यु के परिणामस्वरूप वैराग्य के प्रति इनका झुकाव बढ़ गया।

फरवरी, 1509 ई. में ये संन्यासी बनकर पुरी में रहने लगे और यहीं से उन्होंने भ्रमण प्रारम्भ किया। उन्होंने गया, बनारस, प्रयाग, मथुरा, ट्रावनकोर (दक्षिण भारत) तथा गुजरात की यात्राएं कीं। 1515 ई. से 1533 ई. तक वे पुरी में रहे और 1533 ई. में ही उन्होंने नश्वर शरीर का त्याग किया।  Chaitanya Mahaprabhu Ka Jeevan Parichay

Chaitanya Mahaprabhu Ka Jeevan Parichay
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चैतन्य का आध्यात्मिक दृष्टिकोण – चैतन्य ने राम और विष्णु के स्थान पर कृष्ण को अपना आराध्य देव बनाया। चैतन्य की भक्ति साधना के नौ प्रमुख सिद्धान्त हैं :

(i) एकेश्वरवाद – चैतन्य का विश्वास एकेश्वरवाद में था। हरि के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है।

(ii) आदि शक्ति – चैतन्य अपने इष्टदेव हरि को आदि शक्ति मानते थे।

(iii) रस-सागर – कृष्ण रस के समुद्र हैं। रस का अर्थ भक्त तथा आराध्य देव का प्रेम है।

(iv) जीव-आत्मा – चैतन्य का आत्मा के आवागमन में विश्वास था। आत्मा माया के कर्म चक्र में बंधी हुई है।

(v) प्रकृति में बंधा हुआ – प्रकृति, ईश्वरीय माया, प्रधान, प्रपंच, अविद्या में फंसी हुई आत्मा है।

(vi) प्रकृति के बन्धन से मुक्त – धर्म, योग, वैराग्य, हरि भक्ति रस तथा कृष्ण भक्ति रस से आत्मा प्रकृति के बन्धन से मुक्त होती है।      Chaitanya Mahaprabhu Ka Jeevan Parichay

(vii) हरि का अचिन्त्य प्रकाश – परमात्मा आत्मा से भिन्न है फिर भी दोनों का अंश एक है। ईश्वर अपरिवर्तनीय है तथा जाति उसकी कृति है।

Chaitanya Mahaprabhu Ka Jeevan Parichay
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(viii) भक्ति – चैतन्य के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए कर्म तथा ज्ञान मार्ग अत्यन्त कठिन है, अतः उन्होंने भक्ति की प्रधानता को मोक्ष के लिए एकमात्र साधन बताया।

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