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MAHAJANPAD KAAL
(महाजनपद काल)
उत्तर वैदिक काल के अंतिम चरण के बाद जनपदो का निर्माण होने लगा । इस समय लोहे की खोज हो चुकी थी, जिसने कृषि, शिल्प, व्यापार और राजनीती में एक क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया था । नगरीकरण ने जनपदों को महाजनपदो में तब्दील कर एक नई राजनितिक व्यवस्था कायम की, जिसे महाजनपद काल के नाम से जाना जाने लगा । बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय में 16 महाजनपदो का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है –
महाजनपद | राजधानी |
---|---|
अंग | चम्पा |
काशी | वाराणशी |
मगध | राजगृह, गिरिव्रज |
पांचाल | अहिक्षत्र, काम्पिल्य |
कौशल | श्रावस्ती/ अयोध्या |
वज्जि | वैशाली (उत्तरी बिहार) |
मल्ल | कुशीनगर |
वत्स | कौशाम्बी |
गांधार | तक्षशिला |
शूरसेन | मथुरा |
मतस्य | विराट नगर (राजस्थान) |
कुरु | इन्द्रप्रस्थ |
चेदि | सुक्तिमती (बुंदेलखंड) |
अवन्ती | उज्जयिनी, महिष्मती |
अश्मक | पोतन या पोटिल (आंध्रप्रदेश) |
कम्बोज | हाटक (कश्मीर) |
MAHAJANPAD KAAL
इन सोलह महाजनपदों में वज्जि और मल्ल गणतंत्र थे शेष सभी राजतंत्रात्मक राज्य थे । इन सोलह महाजनपदो में मगध सबसे शक्तिशाली बन गया और साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा ।
मगध राज्य का उत्कर्ष:-
छठी शताब्दी ई. पू. मगध एक छोटा सा राज्य था, लेकिन यहाँ की भौगोलिक दशा तथा योग्य एवं महत्वाकांक्षी शासको ने मगध को एक साम्राज्य के रूप में परिवर्तित कर दिया ।
मगध के उत्कर्ष के कारण
- लोहे की खानों की उपलब्धता ।
- कृषि की नवीनतम तकनीक का उपयोग ।
- प्राक्रतिक सुरक्षा ।
- उपयुक्त जंगलो की उपलब्धता से लकड़ी एवं कोयले की व्यापक उपलब्धता ।
- निचली गंगा घाटी के उपजाऊ क्षेत्र का मगध के अधीन होना ।
- शासको की महत्वाकांक्षा एवं उद्यमशीलता ।
- गंगा नदी तक आसान पहुँच ।
- हाथियों की उपलब्धता (भारतीय इतिहास में युद्ध में हाथियों का सर्वप्रथम प्रयोग मगध ने किया था।)।
MAHAJANPAD KAAL
मगध का राजनितिक इतिहास
हर्यक वंश (544 – 412 ई. पू.)
बिम्बिसार (544 – 492 ई. पू.)
बिम्बिसार इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक था । मगध राज्य की आरंभिक राजधानी गिरिब्रज (राजगृह) थी । बिम्बिसार बुद्ध का समकालीन था । उसने कौशल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकौशाला से विवाह किया तथा विवाहोपरांत उसे दहेज़ में काशी का क्षेत्र मिला । उसकी दूसरी पत्नी वैशाली की लिच्छवी राजकुमारी थी, जिसने अजातशत्रु को जन्म दिया । बिम्बिसार ने अंग राज्य को जीतकर अपने पुत्र अजातशत्रु को वहाँ का शासक नियुक्त कार दिया गया । बिम्बिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को अवन्ती नरेश चंडप्रद्योत के राज्य में उसकी चिकित्सा के लिए भेजा था । अजातशत्रु अपने पिता बिम्बिसार की हत्या करके मगध का शासक बना । MAHAJANPAD KAAL
अजातशत्रु (492 – 460 ई. पू.)
अजातशत्रु जिसका उपनाम कुणिक था, उसने काशी एवं वज्जि जनपदों को एक लंबे संघर्ष के बाद मगध साम्राज्य में मिला लिया । उसकी इस सफलताओ में रथमुसल और महाशिलाकंटक जैसे हथियारों का प्रयोग तथा फुट डालो व राज करो की निति की महत्वपूर्ण भूमिका रही । इसके बाद उसने मगध गणराज्य पर भी नियंत्रण स्थापित कर लिया । उसके शासन काल के आठवे वर्ष में बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ । बुद्ध के अवशेषों पर उसने राजगृह में स्तूप का निर्माण करवाया इसी काल में राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगति का आयोजन हुआ, जिसमें बुद्ध की शिक्षाओ को सुत्तपिटक व विनयपिटक के रूप में लिपिबद्ध किया गया । अंतिम समय में अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन द्वारा कर दी गयी ।
उदायिन (460 – 444 ई. पू.)
पुराणों एवं जैन ग्रंथो के अनुसार उदायिन ने गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की तथा उसको अपनी राजधानी बनाया । उदायिन जैन धर्म का अनुयायी था ।
हर्यक वंश का अंतिम शासक नागदशक था । नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ई. पू. में पदच्युत कर मगध पर अधिकार कर लिया और शिशुनाग नामक एक नये वंश की नीव डाली । MAHAJANPAD KAAL
शिशुनाग वंश (412 – 344 ई. पू.)
शिशुनाग (412 – 394 ई. पू.) ने अवन्ती एवं वत्स राज्य पर अधिकार कर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया । इस समय मगध साम्राज्य के अंतर्गत बंगाल से मालवा तक का भू भाग सम्मिलित था । शिशुनाग ने वज्जि जनपद पर नियंत्रण रखने के लिए पाटलिपुत्र के अतिरिक्त वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया ।
कालाशोक (394 – 366 ई. पू.) ने वैशाली के स्थान पर पुनः पाटलिपुत्र को अपनी राजधानी बनाया । गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद कालाशोक के शासन काल के दसवें वर्ष में वैशाली में द्रितीय बौद्ध संगति (383 ई. पू.) का आयोजन हुआ । इस संगति में विभेद उत्पन्न होने के कारण यह संप्रदाय दो भागों में बंट गया । इस वंश का अंतिम शासक नन्दिवर्धन था ।
नन्द वंश (344 – 322 ई. पू.)
पुराणों के अनुसार इस वंश का संस्थापक महापद्मंनद एक शुद्र शासक था । एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर उसने एकराट और एकछत्र की उपाधि धारण की । उसने कलिंग को जीतकर मगध साम्राज्य में मिला लिया । महापद्मानंद के आठ पुत्रो में घनानंद सिकंदर का समकालीन था । इसी की समय 326 ई. पू. में सिकंदर ने पश्चिमोत्तर भारत पर आक्रमण किया था । 322 ई. पू. में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से घनानंद की हत्या कर मौर्यवंश की नीव डाली । MAHAJANPAD KAAL
ईरानी आक्रमण
जिस समय मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत के छोटे छोटे राज्य मगध की साम्राज्यवादी निति का शिकार हो रहे थे उसी समय पश्चिमोत्तर भारत में अराजकता एवं अशांति का वातावरण व्याप्त था । इस क्षेत्र में कोई शक्तिशाली साम्राज्य नही था जो इस छोटे छोटे राज्यों को संघठित कर सके । प्राचीन भारत में प्रथम विदेशी आक्रमण ईरान के हखमनी वंश के राजाओं ने किया था ।
ईरानी शासक दारा प्रथम 516 ई. पू. में पश्चिमोत्तर भारत में प्रवेश कर गया था और उसने पंजाब, सिन्धु नदी के पश्चिम के इलाके और सिंध को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया । हेरोडोटस के अनुसार यह क्षेत्र फारस (ईरान) का बीसवां प्रान्त बन गया । दारा तृतीय को सिकंदर द्वारा पराजित किये जाने के बाद भारत पर ईरानी साम्राज्य का अधिकार समाप्त हो गया । ईरानी लिपिकार भारत में लेखन का एक ख़ास रूप लेकर आये थे, जो आगे चलकर खरोष्ठी नाम से प्रसिद्ध हुआ । अशोक के कुछ अभिलेख इसी लिपि में लिखे गए है ।
सिकंदर का अभियान
भारत विजय अभियान के अंतर्गत सिकंदर ने 326 ई. पू. बल्ख (बैक्ट्रिया) को जितने के बाद काबुल होते हुए हिन्दुकुश पर्वत पार किया । सिकंदर अरस्तु का शिष्य था । उसके सेनापति का नाम सेल्यूकस निकेटर था तथा उसके जल-सेनापति का नाम निर्याकस था । सिकंदर को भारत में सर्वप्रथम तक्षशिला के शासक आरंभि का सामना करना पड़ा, जिसने बिना संघर्ष किये ही सिकंदर की अधीनता स्वीकार कर ली । भारत में झेलम नदी के किनारे सुप्रसिद्ध “वितस्ता का युद्ध” (हईडेस्पिज का युद्ध) पौरव के राजा पौरस और सिकंदर के बीच हुआ ।
यद्यपि इसमें राजा पौरस की हार हुई, परन्तु सिकंदर ने उसकी बहादूरी से प्रभावित होकर उसका राज्य उसे वापस कर उससे मित्रता कर ली । सिकंदर जब व्यास नदी के पश्चिमी किनारे पहुंचा तो उसके सैनिको ने आगे बढने से मना कर दिया, तब सिकंदर ने विजय अभियान को रोक दिया और विजित प्रदेशो को अपने सेनापति फिलिप को सौंप कर लौट गया । लगभग 323 ई. पू. बेबीलोन में उसका निधन (मस्तिष्क ज्वर से) हो गया । सिकंदर भारत में लगभग 19 वर्ष रहा ।
सिकंदर के आक्रमण का भारत पर प्रभाव
- सिकंदर के अभियान से विभिन्न मार्गो का विकास हुआ इससे यूनानी व्यापारियों और शिल्पियों के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ तथा व्यापार की सम्भावनाये बढी ।
- यूनानियो की मुद्रा निर्माण कला का प्रभाव भारतीय मुद्रा निर्माण कला पर पड़ा, जिससे भारतीय भी आकर्षक मुद्रा ढालने लगे ।
- कनिष्क के शासनकाल में विकसित गांधार कला पर भी यूनानी प्रभाव भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है ।
- साम्राज्यवादी भावना का विकास हुआ जिसका तीव्र उदाहरण मौर्य साम्राज्य था ।
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- किस शासक ने पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की ?
(अ) उदायिन (ब) अशोक
(स) अजातशत्रु (द) बिम्बिसार
- 323 ई. पू. में सिकंदर की मृत्यु कहा हुई ?
(अ) ईरान (ब) फारस
(स) तक्षशिला (द) बेबीलोन
- मगध की प्रथम राजधानी थी ?
(अ) वैशाल (ब) पाटलिपुत्र
(स) गिरिब्रज/राजगृह (द) वज्जि
- बिम्बिसार के राजवैद्य का नाम था –
(अ) जीवक (ब) चरक
(स) सुश्रुत (द) अरस्तु
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- भारतीय इतिहास में युद्ध में हाथियों का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया था ?
(अ) कौशाम्बी (ब) तक्षशिला
(स) मगध (द) अवन्ती
- सिकंदर के सेनापति का नाम क्या था ?
(अ) हेरोडोटस (ब) सेल्यूकस निकेटर
(स) फिलिप (द) निर्याकस
- द्रितीय बौद्ध संगति (383 ई. पू.) का आयोजन किसके काल में हुआ ?
(अ) अजातशत्रु (ब) बिम्बिसार
(स) शिशुनाग (द) कालाशोक
- वितस्ता का युद्ध किस नदी के किनारे हुआ ?
(अ) चेनाब (ब) व्यास
(स) झेलम (द) सिन्धु
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- हर्यक वंश का अंतिम शासक कौन था ?
(अ) नागदशक (ब) दशरथ
(स) कालाशोक (द) नन्दिवर्धन
उत्तर :- 1 (अ) : 2 (द) : 3 (स) : 4 (अ) : 5 (स) : 6 (ब) : 7 (द) : 8 (स) : 9 (अ)
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