Lokpal and Lokayukta polity Important 2020

                    Lokpal and Lokayukta polity

Lokpal and Lokayukta polity

भारतीय प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-1970) ने नागरिकों की समस्याओं के समाधान हेतु ! दो विशेष प्राधिकारियों लोकपाल व लोकायुक्त की नियुक्ति की सिफारिश की। यह सिफारिश स्कैण्डनेवियन देशों के इंस्टीटयट ऑफ ओम्यसमैन और न्यूजीलैण्ड के पार्लियामेंट्री कमीशन ऑफ इन्वेस्टिगेशन से प्रेरित थी।

इनमें लोकपाल मंत्रियों, केंद्र तथा राज्य स्तर के सचिवों से संबंधित शिकायतों को देखता है !और लोकायुक्त (एक केंद्र में एक प्रत्येक राज्य में) विशेष उच्च अधिकारियों के विरुद्ध होने वाली शिकायतों को देखता है।

आयोग ने न्यूजीलैण्ड की तरह न्यायालयों को इनके दायरे से बाहर रखने का सुझाव दिया। ध्यातव्य है, कि स्वीडन में न्यायालय भी ओम्बुड्समैन के अन्तर्गत आता है।

आयोग की सिफरिश के पश्चात् 1968 से लेकर 2011 तक इस संदर्भ, में विभिन्न विधेयक लाए गए! परन्तु उन्हें किसी न किसी कारण से अन्तिम रूप नहीं दिया जा सका। उड़ीसा राज्य ने 1970 में अधिनियम पारित किया ! परंतु वह 1983 में लागू हो पाया। राज्यों में सर्वप्रथम लोकायुक्त का गठन 1971 में महाराष्ट्र में हुआ था।

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013

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सरकारी कर्मचारियों विशेषकर उच्च स्तर के कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के मामलों से निपटने को ध्यान में रखकर सरकार ने एक संयुक्त प्रारूप समिति गठित की। इस समिति के सदस्य भारत सरकार द्वारा नामांकित पाँच मंत्री और प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके द्वारा नामांकित चार अन्य व्यक्ति थे।

इस समिति के पर्यालोचन के आधार पर राज्यों के मुख्यमंत्रियों और विभिन्न राजनैतिक दलों की सलाहों के आधार पर लोकपाल बिल तैयार किया गया। यह बिल कैबिनेट के अनुमोदन के पश्चात् 04 अगस्त, 2011 को लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।

इस बिल को कुछ संशोधनों के साथ लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कर दिया गया और 1 जनवरी, 2014 को इसे भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति भी मिल गई। यह बिल 16 जनवरी, 2014 से देश में लागू हो चुका है।

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013. की कुछ प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

  1.  केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की स्थापना होगी। लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य और A, B, C और 0 श्रेणी के अफसर तथा केंद्र सरकार के अफसर आएंगे।
  2.  लोकपाल में एक अध्यक्ष और 8 से अनधिक सदस्य होंगे। सदस्यों में 50% सदस्य न्यायिक सेवा के होंगे। लोकपाल के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा स्त्रियों के बीच से होंगे।
  3. अध्यक्ष व सदस्यों का चयन एक समिति के द्वारा किया जाएगा।
  4.  इस समिति में निम्नलिखित व्यक्ति होंगे

(i) प्रधानमंत्री।                                Lokpal and Lokayukta polity

(ii) लोकसभा अध्यक्षा

(iii) लोकसभा में विपक्ष का नेता।

(iv) भारत का मुख्य न्यायाधीश अथवा उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय का कार्यरत न्यायाधीश।

(v) कोई प्रतिष्ठित न्यायविद् जो राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति के चार सदस्यों की अनुशंसा पर नामित हो।

5.एक सच समिति,चयन समिति की मदद करेगी। सर्च समिति के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातिअन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक तथा स्त्रियों के वर्ग से होंगे।

6. प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में लाया गया है लेकिन बहुत सारे विषयों में वह लोकपाल से परे है। उसके खिलाफ आरोप के निपटारे के लिये विशेष प्रक्रिया अपनाई गई है।  Lokpal and Lokayukta polity

7.वे सभी इकाइयाँ जिन्हें विदेशों से दान में पैसा मिलता है और जो FCRA (Foreign Contribution Regulation Act) के तहत 10 लाख प्रतिवर्ष से ज्यादा का अनुदान पाते हैं. लोकपाल के क्षेत्राधिकार में आएंगी।

8. जिन संस्थाओं का सरकार पूर्णत: या अंशत: वित्तीयन करती है, वे लोकपाल के क्षेत्राधिकार में आएगी परंतु, जिन संस्थाओ को सरकार वित्तीय सहायता देती है वे लोकपाल के क्षेत्राधिकार में नहीं आएंगी।

9.राज्य इस अधिनियम के लाग होने के 365 दिनों के भीतर लोकायुक्त का गठन करेंगे। स्पष्टतः लोकायुक्त की बनावट आदि के संदर्भ में राज्यों को पुरी स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

अधिनियम की कमियाँ       

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यूँ तो लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, शक्ति के दुरुपयोग, कुशासन, भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिये महत्त्वपूर्ण विशेषताओं से युक्त हैं, परन्तु इस बिल में कई ऐसी कमियाँ हैं जिनको नकारा नहीं जा सकता। ये कमियाँ निम्नलिखित हैं

(i) लोकपाल किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता।

(ii) ज़ोर वास्तव में शिकायत के रूप पर दिया गया है जबकि विषयवस्तु पर होना चाहिये था।

(iii) गलत शिकायत के लिये छोटे-मोटे दण्ड का नहीं अपितु कड़े दण्ड का प्रावधान होना गलत है। यह सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ होने वाली शिकायतों पर रोक लगाता है।

(iv) गुप्त शिकायत की अनुमति नहीं है।

(v) जिस सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध शिकायत हुई हो उसे कानूनी सहायता देने का प्रावधान किया गया है। (vi) 7 वर्ष के भीतर शिकायत करने की बाध्यता है।

(vii) प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत को निपटाने के लिये जो प्रक्रिया अपनाई गई है, वह वास्तव में अपारदर्शी है।

लोकायुक्त (Lokayukta)                          Lokpal and Lokayukta polity

  1. इसका का ढाँचा राज्यों पर आधारित है। सभी राज्यों ने अपने-अपने अनुसार इसका गठन किया है, अत: सभी राज्यों में इसका ढाँचा एक समान नहीं है। लोकायुक्त की नियुक्ति संबंधित राज्यपाल द्वारा की जाती है। नियुक्ति करते समय राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और विधानसभा में विपक्ष के नेता से परामर्श करना अनिवार्य है।
  2. लोकायुक्त अधिकांश राज्यों में 5 वर्ष अथवा 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक पद धारण करता है। लोकायुक्त पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होता है। कुछ राज्यों ने लोकायुक्त के लिये न्यायिक योग्यता अनिवार्य की है तो कुछ कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं की है।
  3. मंत्रियों व कर्मचारियों को लगभग सभी राज्यों में लोकायुक्त के अधिकार क्षेत्र में रखा गया है। कुछ राज्यों ने मुख्यमंत्री को भी इसकी परिधि में रखा है जैसे- मध्य प्रदेश। स्थानीय निकाय, निगम कंपनियाँ, समितियों के अधिकारियों को अधिकांश राज्यों ने लोकायुक्त की जाँच परिधि में रखा है।
  4. लोकायुक्त अधिकांश राज्यों में किसी नागरिक द्वारा की गई अनुचित प्रशासनिक कार्यवाही की शिकायत पर अथवा स्वयं भी जाँच प्रारम्भ कर सकता है। उत्तर प्रदेश, असम व हिमाचल प्रदेश ने लोकायुक्त को स्वयं पहल करने की अनुमति नहीं दी है।Lokpal and Lokayukta polity
  5. इसकी  जाँच के लिये राज्य की एजेंसियों की सहायता ले सकता है। वह राज्य सरकार के विभागों से संबंधित मामलों की फाइलें व दस्तावेज मंगा सकता है।
  6.  लोकायुक्त की सिफारिशें केवल सलाहकारी होती हैं, वे राज्य सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं होती हैं।
  7.  इससे  संबंधित राज्य के राज्यपाल को अपने कार्य निष्पादन का एक समेकित वार्षिक विरण देते हैं। राज्यपाल इस विवरण को एक व्याख्यात्मक ज्ञापन के साथ राज्य की विधायिका में प्रस्तुत करवाता है। Lokpal and Lokayukta polity

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