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Hensang ki bharat yatra ka varnan
ह्वेनसांग की भारत यात्रा का वर्णन
Hensang ki bharat yatra ka varnan हर्ष के शासनकाल की एक प्रमुख घटना चीनी यात्री ह्वेनसांग का भारत आगमन था।
हेनसांग को यात्रियों का राजकुमार (The Prince of Pilgrims) तथा ‘नीति का पण्डित’ कहा जाता है। यह सर्वविदित है, कि तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक तथा बौद्ध धर्म की स्थिति के सम्बन्ध में ह्वेनसांग की कृति (सी-यू-की) से जितना पता चलता है ! उसके अभाव में हमारा प्राचीन भारत का ज्ञान अधूरा है।
ह्वेनसांग का जीवन परिचय एवं भारत यात्रा Hensang ki bharat yatra ka varnan
ह्वेनसांग का जन्म 600 ई. में चीन के होमान-फू के समीप हुआ था। उसके पिता का नाम हुई था, तेरह वर्ष की आयु में ही बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण करके उसने बौद्ध धर्म का प्रचार किया तथा 20 वर्ष की आयु में भिक्षु बन गया।
बौद्ध धर्म सम्बन्धी अनेक शंकाओं के निवारण हेतु उसने 629 ई. में भारत की ओर प्रस्थान किया। 644 ई. तक भारत में रहने के पश्चात् उसने चीन की ओर प्रस्थान किया। वह अफगानिस्तान, काशगर तथा खोतान होता हुआ 645 ई. में चीन पहुंचा।
भारत से ह्वेनसांग अपने साथ बौद्ध धर्म ग्रन्थों की प्रतिलिपियां तथा महात्मा बुद्ध की अनेक मूतियां व स्मारक-चिह्न चीन ले गया था। 664 ई. में ह्वेनसांग की मृत्यु हो गई। Hensang ki bharat yatra ka varnan
ह्वेनसांगकालीन भारत की स्थितिः
1. राजनीतिक दशा – चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्ष के शासन से बहुत प्रभावित हुआ था। राजा के परिश्रम तथा दानशीलता की भी ह्वेनसांग ने बहुत प्रशंसा की है। ह्वेनसांग के अनुसार, “राजा का दिन तीन भागों में विभक्त था—दिन का एक भाग तो शासन के मामलों में व्यतीत होता था और शेष दो भाग धार्मिक कृत्यों में व्यतीत होते थे।
वे काम से कभी थकने वाले न थे, उनके लिए दिन का समय ही बहुत कम था। अच्छे कार्यों में वे इतने संलग्न रहते थे कि वे सोना और खाना तक भूल जाते थे।” Hensang ki bharat yatra ka varnan
ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष के काल में प्रजा सुखी एवं सम्पन्न थी। कर भी जनता पर अधिक नहीं थे। भू-कर भी उपज का 1/6 भाग होता था। हर्ष राजकीय आय का सदुपयोग करने के उद्देश्य से उसे चार भागों में विभक्त करता था!
पहला भाग राजकीय कार्यों के लिए ,दूसरा सरकारी कर्मचारियों के लिए, तीसरा विद्वानों की सहायता व चौथा दान के लिए रहता था। न्याय -व्यवस्था अत्यन्त सक्षम थी तथा अपराधियों को कठोर दण्ड दिए जाते थे। ह्वेनसांग ने हर्ष की शक्तिशाली सेना का भी उल्लेख किया है।
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2.आर्थिक स्थिति – ह्वेनसांग के वृत्तान्त से हर्षकालीन आर्थिक स्थिति पर भी प्रकाश पड़ता है। हर्षकालीन आर्थिक स्थिति में कृषि की ही प्रधानता थी तथा कृषि के द्वारा ही जनता अपनी रोजी-रोटी अर्जित करती थी। सारे देश में सर्वत्र खेती होती थी और अन्न, फल, फूल अधिक मात्रा में पैदा होते थे। सिंचाई की उचित व्यवस्था करके कृषि की उन्नति की जाती थी।
भारत से विदेशों को चन्दन की लकड़ी, जड़ी-बूटियां, गर्म-मसाले, कपड़े तथा अन्य वस्तएं निर्यात होती थीं ! तथा भारत में घोड़े, धूप, हीरा व हाथी-दांत, आदि आयात किया जाता था।
हर्षकाल में चांदी के सिक्कों का प्रचलन था तथा सोने के सिक्कों का प्रचलन प्रायः बन्द हो गया था !
3.धार्मिक स्थिति – ह्वेनसांग ने लिखा है कि यद्यपि हर्ष तो बौद्ध धर्म का अनुयायी था, किन्त उस समय अनेक धर्म भारत में प्रचलित थे। जीवनी में भी विभिन्न सम्प्रदायों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है ! “भूत; निर्ग्रन्थ, कापालिक तथा चूर्डिक सभी विभिन्न रूपों में रहते हैं। सांख्य व वैशेषिक के अनुयायियों में परस्पर विरोध है।
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4. सामाजिक स्थिति – ह्वेनसांग के वृत्तान्त से हर्षकालीन सामाजिक व्यवस्था पर व्यापक प्रकाश पड़ता है। ह्वेनसांग के अनुसार, “परम्परागत जाति-विभेद में चार वर्ग हैं ! चारों जातियों में विभिन्न मात्रा में धार्मिक अनुष्ठान-जनित पवित्रता है।” इनके अतिरिक्त ह्वेनसांग ने मिश्रित जातियों का भी उल्लेख किया है।
ह्वेनसांग के अनुसार अन्तर्जातीय विवाह प्रचलित नहीं थे, तथा अनुलोम-विवाह को भी निरुत्साहित किया जाता था। स्त्रियों का पुनर्विवाह नहीं होता था। वेनसांग के अनुसार तत्कालीन समाज में सती-प्रथा प्रचलित थी। समाज में बहु-विवाह की प्रथा थी। स्त्री-पुरुष दोनों की ही शिक्षा पर ध्यान दिया जाता था।
जनता सादा भोजन व वस्त्र का प्रयोग करती थी। प्याज, लहसुन, मांस व मदिरा से प्रायः परहेज किया जाता था। वस्त्र सिले हुए नहीं होते थे। लोग सादा मकानों में रहते थे। नाटक व विभिन्न प्रकार के खेल मनोरंजन के प्रमुख साधन थे।
निष्कर्ष – इस प्रकार स्पष्ट है, कि भारतीय इतिहास में ह्वेनसांग का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। संस्कृत के जिन ग्रन्थों का उसने चीनी भाषा में अनुवाद किया वे प्रायः लुप्त हो गए हैं, किन्तु चीनी भाषा में यही ग्रन्थ पूर्णतया सुरक्षित हैं।
प्रो. गौरीशंकर चटर्जी ने ह्वेनसांग की प्रशंसा करते हुए लिखा है, “वह (ह्वेनसांग) केवल एक अनुवादक ही नहीं था, अपितु एक महान उपदेशक भी था, जिससे बहुसंख्यक चीनी तथा जापानी विद्वानों ने शिक्षा प्राप्त की। निस्सन्देह, वह चीनी यात्री बोद्ध धर्म रूपी गगन मण्डल के अत्यधिक जाज्वल्यमान प्रकाश-पिण्डों में से एक था!
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