Gupta Kaal Ki Pramukh Visheshta important topic

Gupta Kaal Ki Pramukh Visheshta

गुप्त-युग (स्वर्ण-काल) की प्रमुख विशेषताएं 

Gupta Kaal Ki Pramukh Visheshta गुप्त-युग को भारत के इतिहास में स्वर्ण-युग के नाम से जाना जाता है। गुप्त शासकों ने भारत को राजनीतिक एकता, सुरक्षा व शान्ति की सुरक्षा व शान्ति की भावना प्रदान की। गुप्त काल शान्ति तथा समृद्धिं,नगर संस्कृति तथा परिमार्जन, धार्मिक पुनरुत्थान तथा बौद्धिक प्रयास, उत्कृष्ट साहित्य तथा कला की उन्नति का युग था।

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Gupta Kaal Ki Pramukh Visheshta गुप्त-युग (स्वर्ण-काल) की प्रमुख विशेषताएं 

एल. डी. वारनेट ने  गुप्त-युग को भारत का पेरीक्लीयन युग कहा है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य इतिहासकारों ने गुप्त-युग को इंग्लैण्ड के एलिजाबेथ के शासनकाल (जिसे इंग्लैण्ड का स्वर्ण-युग कहा जाता है) के समान माना है। गुप्त-युग को ‘क्लासिकल एज’ (Classical Age) की भी संज्ञा दी जाती है।  Gupta Kaal Ki Pramukh Visheshta

गुप्त-काल को स्वर्ण-युग कहा जाने के लिए इस युग में हुई चतुर्दिक उन्नति उत्तरदायी  है। इस काल में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा कला, आदि प्रत्येक क्षेत्र में असीमित उन्नति हुई। गुप्त-काल को स्वर्ण-युग बनाने के लिए निम्न कारण उत्तरदायी थे।

(1) योग्य सम्राट – गुप्त-वंश की स्थापना 275 ई. के लगभग तथा पतन 550 ई. के लगभग हुआ। गुप्तवंशीय शासकों ने अत्यन्त दूरदर्शिता एवं नीति-कुशलता का परिचय दिया। राजनीतिक उपलब्धियों के समान ही सांस्कृतिक क्षेत्र में भी गुप्त शासकों ने सराहनीय कार्य किए। उन्होंने कला, शिक्षा व विद्वानों को आश्रय प्रदान किया।

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(2) विदेशी शासन की समाप्ति – गुप्त शासकों ने विदेशी राज्यों पर आक्रमण करके उन्हें परास्त किया व उनके राज्यों को अपने साम्राज्य में विलीन कर भारत में विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंका।

 (3) राजनीतिक एकता की स्थापना – मौर्यों के पश्चात् तथा गुप्तों के उदय से पूर्व लगभग पांच शताब्दियों तक भारत खण्डित अवस्था में रहा। गुप्त-शासकों ने पुनः एक बार भारत को एक अखण्ड व सबल राष्ट्र के रूप में परिणत कर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की।

(4) कुशल प्रशासन – गुप्त-शासकों ने कुशल प्रशासन की व्यवस्था से देश में शान्ति की स्थापना की। कुशल प्रशासन के परिणामस्वरूप जनता आर्थिक रूप से भी समृद्ध हो सकी क्योंकि शान्ति व सुव्यवस्था से व्यापार का तेजी से विकास हुआ।

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(5) नैतिकता  – गुप्तकालीन शासकों द्वारा प्रजा के नैतिक विकास की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप जनता में नैतिकता व धर्म-परायणता की भावनाओं का प्रादुर्भाव हुआ।

(6) आर्थिक समृद्धि – गुप्त-शासकों ने प्रशासनिक कार्यों के अन्तर्गत कृषि के विकास की ओर अत्यधिक ध्यान दिया क्योंकि गुप्त-काल में भारत एक कृषि प्रधान देश ही था। गुप्त शासकों ने सिंचाई का उचित प्रबन्ध किया था। वाणिज्य एवं व्यापार को दिए गए प्रोत्साहन के परिणामस्वरूप गुप्तकालीन जनता आर्थिक रूप से सम्पन्न व समृद्ध हुई।

(7) साहित्यिक उन्नति – गुप्तकाल साहित्यिक उन्नति का युग था। गुप्त-शासकों के दरबार में अनेक कवि और विद्वान रहते थे। गुप्तकालीन प्रमुख विद्वान – हरिषेण (प्रयाग-प्रशस्ति का रचयिता), विशाखादत्त (मुद्राराक्षस का लेखक), विष्णुशर्मा (पंचतन्त्र), वसुबन्धु, वराहमिहिर, भास, शूद्रक, दण्डिन, अमर, चान्द्र व जैनेन्द्र हैं। गुप्तकालीन विद्वानों में सर्वोपरि मान कालिदास का है जो सम्भवतः चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में हुआ था।कालिदास निश्चित रूप से भारतीय काव्यात्मक शैली का सर्वोच्च विद्वान था।

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गुप्तकाल में ही अनेक पुराणों की भी रचना हुई। इसी युग में अनेक दार्शनिकों का भी आविभार्व हुआ जिनमें दिङ्नाग, वात्स्यायन व स्वामिन प्रमुख हैं। वात्स्यायन के कामसूत्र’ की रचना भी इसी युग में हुई।

(8) कला का विकास – गुप्त-काल में कला का सर्वांगीण विकास हुआ ! वास्तुकला,मूर्तिकला, चित्रकला और मृण्मूर्तिकला (Terracottas), आदि कला  के विविध रूपों ने ऐसी परिपक्वता, सन्तुलन और अभिव्यक्ति की नैसर्गिकता प्राप्त की जहां कोई न पहुंच सका।

(9) वैज्ञानिक प्रगति – गुप्त-युग में विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रगति हुई आर्यभट्ट इसी युग  में हुआ था जिसने सर्वप्रथम यह प्रमाणित किया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घुमती है पृथ्वी व सूर्य के मध्य चन्द्रमा आ जाने से ग्रहण होता है। दशमलव प्रणाली का भी उसी ने आविष्कार किया। गुप्तयुगीन प्रमुख ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर था, जिसने वृहज्जातक,वृहतुसंहिता, लघुजातक तथा पंचसिद्धांतिका नामक ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की। गुप्त-काल में औषधि-विज्ञान की भी उन्नति हुई क्योंकि बाग्भट्ट जैसा योग्य वैद्य भी इसी युग में हुआ था। बाग्भट्ट ‘अष्टांगहृदय’ आयुर्वेद का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। पशु चिकित्सक पालकाप्य ने पशु चिकित्सा सम्बन्धी प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘हस्त्युपवेद’ की रचना की।

(10) वृहत्तर भारत की स्थापना – गुप्त-युग में भारतीयों का अनेक देशों से सम्पर्क स्थापित हुआ। धर्म के प्रचार एवं व्यापारिक कारणों से अनेक भारतीय बालि,जावा,  सुमात्रा, मलाया, बोर्नियो, चम्पा, कम्बोडिया, आदि देश पहुंचे तथा वहां उन्होंने उपनिवेश स्थापित कर वृहत्तर  भारत की स्थापना की।

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(11) हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान व धार्मिक सहिष्णुता – मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेने के पश्चात् गुप्त शासकों के उदय से पूर्व तक हिन्दू धर्म की निरन्तर अवनति होती रही, किन्तु प्रारम्भिक गुप्त शासको के वैष्णव धमाॆवलम्बी भी होने के कारण इस यंग में हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान हुआ।

निष्कर्ष –  उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि गुप्त-युग में भारत की सर्वांगीण उन्नति हुई,  अतः इस युग को स्वर्ण-युग कहना न्यायसंगत हैं। मौर्यों के पश्चात् महान गुप्तों का युग निःसन्देह भारतीय राष्ट्र के इतिहास में नव-जागरण, नव-निर्माण और नवोत्कर्ष का द्वितीय महान सर्जनात्मक ऊर्ध्वक्रान्ति का युग था। 

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