gupt kaal ki pramukh kala important notes1

gupt kaal ki pramukh kala

     गुप्त कला

gupt kaal ki pramukh kala गुप्त-युग में समाज और राज्य की आदर्श अवस्थाओं में कला और संस्कृति का अभूतपूर्व उत्कर्ष हुआ।

गुप्त-कला को अध्ययन की सविधा के लिए निम्नलिखित शीर्षकों में विभक्त किया जा सकता है:

Gupta kala for gupta dynasty
gupt kaal ki pramukh kala

(1) वास्तुकला, (2) मूर्तिकला, एवं (3) चित्रकला।

gupt kaal ki pramukh kala

(1) वास्तुकला (Architecuture) –

गुप्तकाल में वास्तुकला के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्नति हुई। गुप्तकालीन वास्तुकला के नमूनों को निम्नलिखित भागों में विभक्त किया जा सकता है

(अ) राजप्रासाद – दुर्भाग्यवश गुप्तकालीन राजप्रासादों में से एक भी सुरक्षित नहीं है। अतः राजप्रासादों के विषय में साहित्यिक ग्रन्थों में किए गए वर्णन व चित्रकला से ही कुछ प्रकाश पड़ता है।

(ब) स्तम्भ गुप्तकालीन प्राप्य प्रमुख स्तम्भों में कुमारगुप्त प्रथम के भिलसद में प्राप्त लाल-बलुए पत्थर से निर्मित चार स्तम्भ, स्कन्दगुप्त के भितरी व काहोम स्तम्भ, बुधगुप्तकालीन एरण स्तम्भ, भानुगप्तकालीन एरण स्तम्भ, आदि हैं। मेहरौली के लौह-स्तम्भ की विद्वानों ने । अत्यधिक प्रशंसा की है।

gupt kaal ki pramukh kala

(स) स्तूप- मौर्य-काल के समान गुप्त-युग में भी अनेक स्तूपों का निर्माण हुआ। गुप्तकालीन स्तूपों में प्रमुख सारनाथ का धमेख-स्तूप है।

(द) विहार गुप्तकाल में अनेक विहारों का भी निर्माण हुआ, जहां बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियां निवास करते थे। वहां उच्च शिक्षा भी प्रदान की जाती थी।

(य) गुहाएं – मौर्यकाल से ही गुहाओं का निर्माण कार्य प्रारम्भ हो गया था। गुप्तों ने भी अनेक गुहाओं का निर्माण कराया।

(र) मन्दिर– गुप्तकालीन वास्तुकला की सर्वोत्तम उपलब्धि उस समय मन्दिरों का निर्माण किया जाना था। मन्दिरों में प्रमुख – देवगगढ़ का दशावतार मन्दिर, तिगवां का विष्णु मन्दिर,नचना कुठार का पार्वती मन्दिर, भूमरा का शिव मन्दिर तथा भीतरगांव का मन्दिर है। इसमें भीतरगांव का मन्दिर ईंटों से निर्मित है, जबकि शेष मन्दिर पाषाण निर्मित हैं। गुप्तकालीन मन्दिरों में निम्नलिखित उल्लेखनीय विशेषताएं थीं :

I.मन्दिर ऊंचे चबूतरे (Platform) पर बनाए जाते थे।

II.मन्दिर के अन्दर एक गर्भगृह होता था जिसमें देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित की जाती थी।

gupt kaal ki pramukh kala

2.मूर्तिकला

मूर्तिकला के क्षेत्र में गुप्त-काल शिल्पियों ने भारत की मूर्तिकला में एक नवीन युग का आविर्भाव किया।

(अ) बौद्ध मूर्तियां गुप्तकालीन महात्मा बुद्ध की प्रमुख तीन मूर्तियां-सारनाथ की बैठी हुई मूर्ति, मथुरा की उत्थित बुद्ध की मूर्ति तथा सुल्तानगंज (बिहार) की तांबे की बनी 71/2 फुट ऊंची मूर्ति जो इस समय बरमिंघम संग्रहालय में है।

इसमें सारनाथ की बुद्ध मूर्ति अत्यधिक आकर्षक है। यह ‘धर्मचक्रप्रवर्तन’ मुद्रा में है। मथुरा की मूर्ति भी आकर्षक एवं कलापूर्ण है। बुद्ध की मुद्रा शांत एवं गम्भीर है तथा चेहरे पर मन्द मुस्कान का भाव व्यक्त किया गया। सुल्तानगंज की बुद्ध मूर्ति अभयमुद्रा में है जो अत्यन्त सजीव एवं प्रभावशाली है।

gupt kaal ki pramukh kala

(ब) शिव मूर्तियां – गुप्तकाल में शिवजी की दो प्रकार की मूर्तियों का निर्माण किया गया।

(स) वैष्णव मूर्तियां गुप्तकालीन प्रारम्भिक शासक वैष्णव धर्मावलम्बी थे, अतः इस युग में भगवान विष्णु की अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया।

(द) जैन मूर्तियां गुप्तकाल में जैन मूर्तियों का भी निर्माण हुआ। कुमारगुप्त के शासनकाल की वर्द्धमान महावीर की पदमासन मुद्रा में मूर्ति प्राप्त हुई है।

(य) अन्य मूर्तियां – गुप्तकाल में हिन्दू देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया। इस युग की बनी राम, कृष्ण, सुदामा, रुकमणी, आदि की मूर्तियां मिलती हैं।

(र) मृण्मयी मूर्तियां (Terracottas) गुप्तकाल में मिट्टी व ईंटों के चूर्ण से देवी-देवताओं व मनुष्यों की मूर्तियों का निर्माण किया गया।

gupt kaal ki pramukh kala

3.चित्रकला (Painting) –

गुप्तकाल में वास्तु एवं मूर्तिकला के समान ही चित्रकला भी अपनी पूर्णता तक पहुंची। गुप्तकालीन चित्रकला का उत्कृष्ट प्रदर्शन अजन्ता एवं बाघ की गुहाओं में किया गया है।

(अ) अजन्ता की चित्रकला अजन्ता में छोटी-बड़ी कुल 29 गुफाएं हैं, किन्तु अब मात्र 06 गुफाओं के चित्र बचे हैं, इन गुहा चित्रों में 16 व 17वीं गुहाओं के चित्र ही गुप्तकालीन हैं, किन्तु शेष में भी गुप्त कला का इतना प्रभाव है कि समूची कला को गुप्त कला ही कहा जाता है। इन गुफाओं के चित्रों में मुख्य रूप से बुद्ध के जन्म, जीवन तथा निर्वाण की घटनाओं एवं विभिन्न पशु-पक्षियों के चित्रों का अंकन किया गया है।

अजन्ता की 16वीं गुफा के चित्रों में मरणासन्न राजकुमारी (Dying Princess) नामक चित्र सर्वाधिक सुन्दर एवं आकर्षक है। ग्रिफिथ, बर्गेस तथा फर्ग्युसन जैसे कलाविदों ने इस चित्र की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है तथा बताया है कि करुणा, भाव एवं अपनी कथा कों स्पष्ट ढंग से व्यक्त करने की दृष्टि से यह चित्रकला के इतिहास में अनतिक्रमणीय है।

gupt kaal ki pramukh kala

(ब) बाघ की चित्रकला बाघ ग्वालियर के समीप एक छोटा-सा ग्राम है, जहां विन्ध्य की पहाड़ियों में 9 गुफाएं हैं जिनकी दीवारों पर चित्र बने हैं, जो कि गुप्तकालीन हैं। चौथी-पांचवीं गुफाओं के भित्ति-चित्र सबसे अधिक सुरक्षित अवस्था में हैं। ये चित्र अजन्ता के धार्मिक चित्रों के विपरीत लौकिक जीवन से सम्बन्धित हैं। इन चित्रों में एक संगीतयुक्त नृत्य के अभिनय का दृश्य अत्यन्त आकर्षक है ,जिसमें स्त्रियों और पुरुषों को अलंकृत वेष-भूषा में बाजों के साथ स्वच्छन्दतापूर्वक नृत्य करते हुए दिखाया गया है। इन चित्रों के माध्यम से तत्कालीन मध्य भारत के सामान्य जन-जीवन का अन्दाजा लगाया जा सकता है।

gupt kaal ki pramukh kala

मार्शल के अनुसार, “बाघ के चित्र जीवन की दैनिक घटनाओं से सम्बन्धित हैं। परन्तु वें जीवन की सच्ची घटनाओं को ही चित्रित नहीं करते वरन् उन अव्यक्त भावों को भी स्पष्ट कर देते हैं जिनको प्रकट करना उच्च कला का लक्ष्य है।”

इस प्रकार स्पष्ट है,कि गुप्त-काल में कला के प्रत्येक आयाम की उल्लेखनीय उन्नात हुई। गुप्त कलाकारों ने जिस वस्तु को हाथ लगायां उसे अत्यन्त कलात्मक बना दिया। अतः इसमे सन्देह नहीं है कि गुप्तकला भारतीय कला के सर्वश्रेष्ठ रूपं का प्रतिनिधि है।

READ MORE :- Fahiyan ki bharat yatra ka varnan

Leave a Comment